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Saturday, 24 February 2018

आतंकवाद (एक कविता वर्ल्ड ट्रेड सेंटर)

आतंकवाद   (एक कविता वर्ल्ड ट्रेड सेंटर)

आतंकवाद   (एक कविता वर्ल्ड ट्रेड सेंटर)

एक था पक्षी विशाल |
एक था घर विशाल |

ढेर हो  गया घर विशाल |
मर गया पक्षी विशाल |

यमराज का था वो दूत |
आतंकवाद का था  वो रूप |

भगवान के फूल टूट गए |
पर कालिया वो छोड़ गए |

खिल सकेंगी क्या वो कलियाँ |
मेहेकेंगी  क्या वो कलियाँ |
माली जिनको छोड़ गया |

जीवन कल क्या होगा उनका |
जिनका भविष्य आज टूट गया |

शायद पाप का घड़ा भरना था |
शायद जल्द ही कुछ करना था |

उस बाबा को दया नहीं |
क्या भगवान को शर्म नहीं आई |

शायद एक बहाना बनाना था |
शायद आतंकवाद को डरना था |

भाग रहा हे आज वो बाबा अंत से |
भाग रहा हे यमराज से |



अंत यही होता है , आतंक जो फैलता है|
पर फूलो की क़ुरबानी,
कलियों की थी जिंदगानी 


भविष्य में येसा ना हो |
आतंकवाद का करना होगा अंत |
इससे लड़ना होगा तुरंत |




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